युगावतार बहाउल्लाह का जन्मोत्सव मनाया गया

युगावतार बहाउल्लाह का जन्मोत्सव मनाया गया


ग्वालियर। ग्वालियर के स्थानीय बहाइयों द्वारा 30 अक्टूबर को बहाई धर्म के संस्थापक भगवान बहाउल्लाह का 202वां जन्मोत्सव ईस्ट पार्क, सिटी सेन्टर स्थित श्रीमती टीना ओल्याई के आवास पर उल्लास के साथ मनाया गया। इस अवसर पर विशेष प्रार्थना सभा और भजन-संध्या आयोजित की गई जिसमें शिनी कलविंत, हरीश शर्मा, सैफ बरतर, महेश सेमर और विशाखा तालेगांवकर ने भक्तिगान प्रस्तुत किए। बहाउल्लाह के पवित्र लेखों से पाठ किया गया और अनुज शर्मा ने बहाउल्लाह के जीवन पर संक्षेप में प्रकाश डाला।


उक्त जानकारी देते हुए स्थानीय बहाई आध्यात्मिक सभा, ग्वालियर, के सचिव सुनीति चंद्र मिश्र ने बताया कि बहाई विश्व धर्म के संस्थापक बहाउल्लाह का जन्म 1817 में तेहरान (ईरान) के एक शाही घराने में हुआ था किंतु राजसी जीवन का त्याग करके उन्होंने गरीबों और वंचितों की सेवा में अपना जीवन लगा दिया। उन्होंने एक नए धर्म – बहाई धर्म – की स्थापना की जिसका ईरान के मुल्लाओं और शासकों ने घोर विरोध किया। बहाउल्लाह को तेहरान की एक कुख्यात जेल "सियाह-चाल" में डाल दिया गया और उन्हें घोर यातनाएं दी गईं। अगले 40 वर्षों तक उन्हें लगातार एक देश से दूसरे देश निष्कासित किया जाता रहा और कठोर कारावास में रखा गया जहां 29 मई 1892 को वे अक्का (वर्तमान इज़रायल) में स्वर्ग सिधार गए।



बहाउल्लाह की दैवीय शिक्षाओं के केंद्र में तीन बुनियादी सत्य हैं – ईश्वर एक है, सभी धर्म एक हैं और मानवजाति एक है। 170 से भी अधिक वर्षों में बहाई धर्म के संदेश का तेजी से प्रसार धार्मिक इतिहास की दृष्टि से अभूतपूर्व है। इस छोटी-सी अवधि में, इस धर्म ने प्रत्येक प्रजातीय, धार्मिक एवं संजातीय पृष्ठभूमियों के लोगों को आकर्षित किया है जो लगभग 300 देशों, प्रदेशों और द्वीपों तक विस्तारित हैं। बहाई साहित्य 800 से भी अधिक भाषाओं में मानव-प्रेम को अभिव्यक्त करते हैं। बहाउल्लाह के वृहत लेखों में शामिल हैं व्यक्तियों और परिवारों के मार्गदर्शन के लिए आध्यात्मिक शिक्षाएं और साथ ही एक प्रगतिशील विश्व-परिवार के रूप में सिकुड़ते हुए समाज के लिए सामाजिक नियम-विधान। कारागार में रहते हुए बहाउल्लाह ने राजाओं और शासकों के नाम अनेक पत्र लिखे और उन्हें सलाह दी कि वे युद्ध का उन्माद फैलाने और साम्राज्य के विस्तार जैसे कार्यों को छोड़ दें। निःशस्त्रीकरण की जो बिगुल हम आज बजते हुए सुन रहे हैं उसकी आवाज पहली बार बहाउल्लाह ने तब बुलन्द की थी जब साम्राज्यवाद अपने चरम पर था।


एक प्रगतिशील मानव समाज के लिए बहाउल्लाह की शिक्षाओं में जीवन के सभी क्षेत्रों के लिए विधान और अध्यादेश शामिल हैं। उनकी प्रमुख शिक्षाओं में शामिल हैं: सभी धर्मों की मूल एकता, सत्य की स्वतंत्र खोज, विज्ञान और धर्म में तालमेल, स्त्री-पुरुष की समानता, अनिवार्य विश्वव्यापी शिक्षा, हर तरह के पूर्वाग्रह का अंत, विश्व शांति, अत्यधिक गरीबी और अमीरी का अंत तथा परामर्श के माध्यम से सभी बातों का शांतिपूर्ण समाधान।